प्रस्तावना (Preamble)

बिहार राज्य और खास कर जिला गया में यतीम बच्चियाँ एक तो ऐसे ही जबरदस्त समस्या है। लेकिन उन की तालीम व तरबियत भी एक और संगीन समस्या है। यतीम बच्चे तो यतीम खाना या मुकामी या बाहरी मदरसों मे जा कर तालीम हासिल कर लेते है। और गैर यतीम लडकियाँ भी तालीम हासिल कर लिया करती हैं। लेकिन यतीम बच्च्यिों की तालीम के लिए बिहार राज्य और जिला गया में न कोई मदरसा है और न कोई यतीमखाना जो उन की तालीम ओ तरबीयत अंजाम दे सके। बंगाल मद्रास और हैदराबाद में तो मुस्लिम लड़कियों का बाजाबता यतीम खाना है मगर बिहार अब तक इस से कोसों दूर है।
बानी-ए-यतीम खाना इस्लमिया गया ने अपने खत दिनाँक 3 अक्तूबर 1938 ई0 बनाम अराकीन यतीमखाना इस्लमिया गया में इस दीरीना ख्वाब का इज़हार इस तरह फरमाया था।
 "आइँदा जनवरी 1939 ई0 से यतीमखाना मज़कूर में यतीम बच्चियों के लिए एक सेग़ा खोला जाए और उन की तालीम ओ तरबीयत के लिए एक मुअल्लिमा मुर्कर्रर की जाए और इस के लिए मोज़़ूँ जगह" कोलौना है"।
इस्लाम की बुलन्द तालीमात को जहन में रखते हुए जनाब इनायत खाँ रह0 (अल्लाह उन पर रहमताें की बारिश करे,) ने यतीमखाना इस्लमिया गया की बुनियाद रखी थी। लेहाजा उन का पहला ख्वाब अक्तूबर 1917 में शर्मिदां-ए-ताबीर हुआ था।
मुस्लिम लड़कियों का यतीमखाना का महरक दर असल यही तीन चीजें है।

  1. बानी ए यतीमखाना इस्लमिया गया का खत।
  2. वफात से कबल बानी ए यतीमखाना इस्लमिया गया ने मुस्लिम लड़कियों का यतीमखाना के क़याम की शदीद ख्वाहिशा का इज़हार करते हुए इस मक़सद के लिए अपनी एक बीघा (तक़रीबन,75डिसिमिल,) ज़मीन भी वक़्फ क्यिा था जो उन की जिन्दगी में पूरा नही हो सका था।
  3. बिहार राज्य में मुस्लिम लड़कियों के यतीमख़ाना की अशद जरूरत जो बिहार राज्य में न होने की वजह कर यतीम लड़कियों के लिऐ संगीन समस्या था।

इनायत खाँ रह0 का दूसरा ख्वाब शर्मिन्दा-ए-ताबीर हुआ। यह मकद्दिस ख़्वाब, पवित्र सपना, बानी ए यतीमखाना इस्लमिया गया के पोते जनाब इकबाल अहमद खाँ के जरिये 21 दिसम्बर 1986 ई0 को तीन यतीम बच्चियों पर मुशतमिल एक किराऐ के खपरैल मकान में बानी-ए-यतीमख़ाना इस्लमिया गया के आबाई गाँव कोलौना में ‘मुस्लिम लड़कियों का यतीमखाना गया‘ के कयाम के बाद पूरा हुआ।
लेहाज़ा अल्लाह की रहमत से इनायत खाँ का दूसरा मिशन (Mission) पूरा हुआ।


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