फौरी ज़रूरत और मास्टर प्लान
(Urgent Needs and master Plan)

तुम अगर समझो तो यह सौ बात की एक बात है।
आबरू इन सब यतीमों की तुम्हारे हाथ है।

(अल्लामा इक़बाल रह0)

एक ऐलान (An Announcement)

अलहमदुलिल्लाह!अदारह बहुत ही बुलन्द मक़ासिद के तहत वजूद में आया है। इसके सामने बड़े ही लम्बे और तवीलमुद्दत मंसूबे हैं। मास्टर पलान के तहत इसकी इमारत की तामीर पर तक़रीबन (तीन करोड) (Three Crore) रू0 का तखमीना है। अदारह के अज़ीम मनसूबो को पाया-ए-तकमील तक पहुँचाने के लिए इमारत की तामीर शुरू हो गई है जिसके लिए आप की एआनतें ही हमारा सबसे बड़ा जरिया-ए- आमदनी है, हदीस में है कि "बन्दाें की खिदमत को अल्लाह तआला ने अपनी खिदमत करार दिया है" बक़ौल आरिफ शिराजी "खुदा तक जल्द पहँचने का रास्ता खिदमत-ए-खल्क़ के अलावा कोई दूसरा नहीं है। यह रास्ता महज जिक् और तसबीह, इबादत व रियाजत और गुदड़ी पहनने पर मुन्हसर नहीं है"। जहाँ आप बहुत से दीनी व इल्मी कामाें में रू0 खर्च करते हैं वहीं इस "यतीमखाना" की "यतीम लड़कियों" की जरूरताें को भी याद रखें। यह कोई वक़्ती जोश और जज़्बे का काम नहीं है। खालिस तामीरी मिशन (Mission) है। यह फिक्र व जहन की आबयारी का वह काम है जिस के लिये एक उमर दरकार है। आप अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करते हुए इस कारे खैर में अपना भरपूर तआवुन बढ़ा कर के तो देखें। कि किस तरह कतरह, कतरह से दरिया और दरिया से समुंदर बन जाते हैं। हमारा ईमान है कि "अगर तुम अल्लाह के दीन के कामाें में मदद के लिए आगे बढ़ो गे तो वह यकीनन तुम्हारी मदद करेगा तुम एक कदम आगे बढ़ो गे तो वह दस (10) क़दम आगे बढ़ाए गा और तुम्हारे क़दम हक़ के ऊपर जमा देगा"।

याद रखें (Always Remember):
(1) बैरूनी तालिबात भी अपना सारा खर्च देकर दारूल अक़ामा (Boarding) मे रहा करती हैं। (2) यतीम और ग़ैर यतीम तालिबात का रहना सहना खाना पीना एक ही साथ हुआ करता है। अदारह में आकर खुद अपनी आँखो से देखें जो मसावात का मिसाली आला नमूना है, और अदारह की पहाड़ी के दामन में शहर से दूर एक गुमनाम बस्ती (कोलौना) में बड़ी सी इमारत हिमालय पहाड़ की तरह खड़ी होनी शुरू हो गई है और जहाँ अब दिन रात कालल्लाह और कालार्रसूल की गूँज है। इस देहाती गाँव का नाम लोगाें की जुबान पर ठीक से चढ़ता भी नही था इसका अब चर्चा मुल्क और मुल्क से बाहर भी होने लगा है किसी ज़माने में मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी रह0 ने किसी देहाती मदरसा को देखकर तहरीर किया था कि "अल्लाहो अकबर। गाँव कितना छोटा और मदरसा कितना बड़ा अल्लाह के दीन के किले कहाँ कहाँ अल्लाह के बन्दाें ने तामीर कर दिए है। बिल्कुल जंगल में मंगल मालूम होता है"। "इन यतीम बच्चियों की पनाहगाह" को खुद आकर अपनी आँखाें से देखें कि दीन की खिदमत किस तरह अंजाम दे रहा है"।

एक अपील (An Appeal): ब्रादरान-ए-इस्लाम ! ज़मीन तैयार करके छोटा सा पौधा खुदा के भरोसा पर लगा दिया गया है लेकिन पौधे को पानी की सख़्त ज़रूरत है। अहले ख़ैर हज़रात से अपील है कि अपनी नोवियत के इस मुनफिरद अदारह के तालीमी व तामीरी मंसूबे में दिल खोलकर हिस्सा लें ताकि यह छोटा सा पौधा जल्द ही गहरी जड़ पकड़ ले और एक मज़बूत और तनावर दरख्त की शक्ल में जल्द खड़ा हो जाए। आप से दुआवाें और माली तआवुन की पुरखुलूस दरख्वास्त है। अगर अल्लाह तआला की मदद व नुसरत शमिल-ए-हाल रही और आप का भरपूर तआवुन रहा तो यह ख्वाब भी इंशाल्लाह तआला जल्द ही हक़ीक़त बन कर सामने आ जाएगा।

दो हदीसें याद रखें
(Remember Two Hadeeses)

  • हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फरमाया "ज़िन्दगी में एक दिरहम खै़रात करना इस से बेहतर है कि मरने के बाद कोई तेरे लिए सौ (100) दिरहम ख़ैरात करे"।
  • जब इंसान मर जाता है तो उस के सारे अमल खत्म हो जाते हैं,, मगर तीन क़िस्म के अमल बाक़ी रह जाते है।

    1. सदक़ा जारिया यानी सदक़ा व ख़ैरात की ऐसी आम शक्ल जिस से लोग तवील अरसे तक फायदा उठाते रहें।
    2. ऐसा इल्म जिस से फायदा उठाया जाता रहे।
    3. ऐसी नेक औलाद जो इस के लिए दुआ करती रहे।


याद रखें (Remember it.): मुसलमानो के असहाबे खैर और अहले सरवत हज़रात नेक काम को, मिल्ली कामाें को, खिदमते,खल्क़ के कामाें को अपने किसी एक जरूरत के बराबर भी मान लें और अपना काम समझने लगें तो बड़े बड़े मसाइल मिनटाें में हल हो सकते हैं।


दुनिया में रहने के लिए तो सब जीते हैं जिगर
इस जहाँ में ज़िन्दगी का मक्सद है औरों के काम आना (जिगर मुरादाबादी)

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