बिसमिल्ला हिर्रहमानिर रहीम

हर्फ़ आग़ाज़ (Letter Of Beginning)

दीनी व असरी तालीम के स्कूल व मदारिस में कुरान-ओ-सुन्नत की तालीम
(The Education of Qur’an & Sunnat In the Modern & Islamic Schools & Madaris)

नहीं तेरा नशेमन क़सरे सुलतानी के गुम्बद पर
तू शाहीन है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानाें में (अल्लामा इकबाल रह0)

मिल्लत ए इस्लामिया की बका वा तरक़्क़ी और नई नस्ल की तालीम व तरबियत के लिए दीनी व असरी तालीम के स्कूल व मदारिस में कुरान ओ सुन्नत की तालीम देना और गाँव गावँ में दीनी मदारिस कायम करना मिल्लत की एक बुनियादी और अहम ज़रूरत है। मिल्लते इस्लामिया इस वक़्त जिस हौलनाक मसाइब व मुशकिलात से दो चार है उस का अन्दाज़ा हर मुसलमान को बखूबी है। लेकिन कौेमों का इलाज बुज़दिली मायूसी और राहे फ़िरार अख़्तियार करने से नही होता। हवा के रूख पर बहना मुसलमानों के शायाने शान नहीं क्यूँकि शरियते इस्लामिया बुज़दिलाें और ना मर्दो के लिए नहीं बनी है। मुसलमानों को ज़माने की आँखों में आँखें डाल कर जमाने को अपने मुताबिक़ ढालने में है। इसी में दुनयवी व अखरवी कामयाबी है और इसी से हम अपना तशख़्खुस बरकरार रख सकते हैं।
बक़ौल मौलाना महमूदल हसन रह0 (असीरे माल्टा),"कुरान करीम को लफ़ज़न और मानन आम क्यिा जाए। बच्चों के लफ़्जी तालीम के मकातिब बस्ती बस्ती क़ायम किये जाएँ"। दूसरे मुफक्किरे इस्लाम अली मियाँ रह0 ने फ़रमाया था कि इस वक़्त का सब से बड़ा जिहाद गाँव गाँव में दीनी मकातिब कायम करना है"।
हमारे असलाफ ने जिन माओं की गोद में तालीम पाई थी वह दीनी हमय्यत और इस्लामी ग़ैरत के जजबे से सरशार थीं "कुरान और इस्लाम बचपन ही से उन की नफसियात में जज़्ब था। इस लिए उन की गोद से ऐसे ऐसे फरज़दांने तौहीद निकले जिन पर हम मुस्लमानों और इस्लामी तारीख़ को नाज़ है। सालेह औरत ही सालेह नस्ल को जन्म देती है। एक अरबी मुफक्किर का क़ौल है कि "माँ एक मदरसा है जब तुम इसे तैयार कर लोगे तो गोया तुम एक पाकीज़ा नस्ल तैयार कर लो गे"। एक दूसरे अरबी मुफक्किर ने कहा है कि "अगर आप एक लड़के को पढ़ाते हैं तो आप एक फर्द को पढ़ाते हैं। अगर आप एक लड़की को पढ़ाते हैं तो गोया आप एक क़ौम को पढ़ाते हैं"।

हम नशीं " आ ज़रा दिल खोल के कुछ बात करें (कलीम आजिज़ रह0)

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