अग़राज-ओ-मक़ासिद
( Aims and Objects)

हमारे अग़राज-ओ-मकासिद ये हैं। एक पाकीजा, सालेह "(खुदा से डरने वाला)" इस्लामी मुआशरह वजूद में लाना और इस के लिए एक साजगार फिजा कायम करना। हमारे अजीम असलाफ की अजीम माएँ इस पाकीजा ख्वाब को सिर्फ इस वजह से हासिल कर सकी कि कुरआन और इस्लाम बचपन ही से उन की नफसियात में जज्ब था और आज ये तब ही मुमकिन है जब इस्लाम की बेटियों को सच्ची इस्लामी तालीमात मुहैया कराई जाएँ।


अदारह के ख़ास अग़राज-ओ-मकासिद (Main Aims and objects) मुन्दरजा ज़ेल हैं।

  1. एक पाकीज़ा और सालेह मुआशरह वजूद में लाना। साथ ही लड़कियों के दिलों में ईमान ओ अमल का जज्बा उभारने की कोशिश करना और फरीज़ा-ए-अकामते दीन के लिए तैयार करना।
  2. यतीम लड़कियों की तालीम ओ तरबियत और निगरानी व निगहदाशत का माकूल इंतजाम करना और ऐसी ख्वातीन तैयार करना जो
    (क) आइंन्दा नस्लों लिए दीनी तरबियत का ज़रिया बन सकें।
    (ख) घरेलू ज़िन्दगी को सलीका से गुज़ार सकें और एक मिसाली ख़ातून और मिसाली मोमिना बन सकें।
  3. यहाँ मज़हबी तालीम के साथ साथ दीनी, अखलाक़ी,दस्तकारी, और उमूरे खानादारी की भी तालीम का नज़्म होगा।
  4. अदारह के अग़राज़ ओ मक़ासिद को हासिल करने और उसके चलाने के लिए सरमाया जमा करना चन्दे और अतिए वसूल करना।
  5. वह सारी तदाबीर अख्तियार करना जो मक़ासिद के हुसूल के लिए ज़रूरी और मुफीद हों।
  6. यह एक खुदमुख्तार तालीमी अदारह होगा। जो अपने दस्तूर, कवाइद व जवाबित और निसाबे तालीम के बनाने और उन में तरमीम व तनसीख करने में किसी की भी किसी शर्त पर अन्दरूनी और बैरूनी मुदाखलत को गवारह नहीं करेगा।
  7. यह किसी भी ऐसी शर्त को क़बूल नही करेगा जो इस के किसी मकसद व उसूल के खिलाफ हो।
  8. इस की तालीमगाह में आम तौर पर जरिया ए तालीम अव्वल से आखिर तक उर्दू में होगा। अलबत्ता खास सूरतों में दूसरी जबानों में भी तालीम दी जा सकती है।
  9. यतीमखाना को किसी सियासी जमाअत से कोई ताल्लुक ना होगा। इस का वाहिद मकसद यतीम लड़कियों की तालीम व तरबियत और परवरिश है। क्यूंकि यतीमखाना को सियासत की गर्ज पूरा करने के लिए अखाड़ा बनाना अदारह को बर्बाद करने के मतारिदफ होगा।
  10. यहाँ के निसाबे तालीम में इस्लामियात को अव्वलीन मुकाम हासिल होगा और बाकी मुज़ामीन कीे सानवी हैसियत होगी निसाबे तालीम इस्लामी अखलाक व किरदार के मवाद पर मुशतमिल होगा।

नोट :- हुकूमत के दस्तूर ए हिन्द आर्टिकिल नमबर 30, (ज़मन 1) में अकलियतों को जो जमानत दी गई है वह इस तरह है:-
तमाम अकलियतें ख्वाह उन की बुनियाद मजहब हो या जबान, उन को हक होगा कि वह अपनी पसन्द की तालीमी दर्सगाह कायम करें और उन का खुद इंतजाम करें।



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