क्या यह भी जन्नती की पहचान है?
(Are These The Symbols Of Paradise Persons?)
बहनों, बेटियों और यतीमों की परवरिश करने वाला जन्नती है।
हुज़ूर नबी करीम सल्लला हो अलैहि वसल्लम ने इरशद फरमाया
- "हर बच्चा इस्लाम कि फितरत पर पैदा होता है। उस के माँ बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी (आतिश परस्त) बना देते है।
- "इंसान को अपनी औलाद को अदब की एक बात सिखाना एक साअ (साढ़े तीन सेर) ग़ल्ला खैरात करने से बेहतर है"।
- "इन्सान को अपनी औलाद को अदब की एक बात सिखाना (एक साअ) साढ़े तीन,तीन सेर, (3 किलो 500 ग्राम) ग़ल्ला खैराते करने से बेहतर है"।
- "बाप अपनी औलाद को जो कुछ देता है उसमें सबसे बेहतर अतिया अच्छी तालीम व तरबियत है"।
- "जिसने दो लड़कियों की तालीम-ओ-तरबियत से आरास्ता कर के परवरिश की यहाँ तक की वह बालिग हो गई तो मैं और वह शख्स क़्यामत के दिन इस तरह करीब होगें यह फरमा कर आपने अपनी दो उँगलियाँ मिला कर दिर्खाइं"।
- "लड़कियो से नफरत ना करो में खुद लड़कियों का बाप हूँ। नीज़ आपने फरमाया बेटियाँ बड़ी मुहब्बत वाली और बड़ी खैर औ बरकत वाली होती हैं"।
- "जिस शख्स की एक बेटी हो और उसको (अय्यामे जाहिलियत की तरह दफन ना किया हो और ना उसको जलील व ख्वार कर के रखा हो और हुकूक़ देने में) लड़को को तरजीह ना दी हो तो अल्लाह उसको जन्नत में दाखिल करे गा"।
- "जो शख्स तीन बेटियों या तीन बहनाें की परवरिश करे,, उनको अदब सिखाए और उन पर रहम और शफक़त करे यहाँ तक कि तक खुदा उन को बेपरवाह कर दे तो दाखिल फरमाएगा अल्लाह उसको जन्नत में"।
- "जब किसी के यहाँ लड़की पैदा होती है तो अल्लाह तआला उसके यहाँ फरिशताें को भेजता है जो आ कर कहते हैं ऐ घर वालो। अस्सलाम-ओ-अलैकुम। फिर वह पैदा होने वाली लड़की को अपने पराें के साये में ले लेते हैं और उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं,, यह एक ना तवाँ कमजोर जान है जो एक ना तवाँ कमज़ोर जान से पैदा हुई है। जो शख़्स इस ना तवाँ कमज़ोर जान की परवरिश की जिम्मेदारी उठाए गा क़्यामत तक खुदा की मदद उसके शामिल-ए-हाल रहे गी"
- "हदीस है कि "लड़के तुम्हारे हक़ में नेमतें है। उन पर शुक्र करो और लड़कियो के बारे में कहा गया है कि यह तुम्हारी नेकियाँ है" गोया नेमत के ऊपर शुक्र वाजिब है। कुफराने नेमत करोगे तो सज़ा मिलेगी। गोया जितनी लड़कियाँ उतनी ही नेकियाँ मिलेंगी उतना ही अज्र मिले गा"।
याद रखें :
1. सालेह औरत ही सालेह नस्ल को जन्म देती है। और उन्हीं की गोद में नस्ल परवरिश पाये गी। एक पाकीजा और सालेह मुआशरे की तशकील सालेह औरत की मदद के बगैर मुमकिन नहीं। हमारे असलाफ ने जिन माओं की गोद में परवरिश पायी थी, वह दीनी हमय्यत और इस्लामी ग़ैरत के जज़्बे से सिरशार थीं। कुरान और इस्लाम बचपन ही से उन की नफसियात में जज़्ब था। इस लिए उन की गोद से ऐसे ऐसे फरज़न्दाने तोहीद निकले जिन पर हम मुस्लमानों और इस्लामी तारीख़ को नाज़ है।
2. (हदीस) में है कि "बेवाओं और यतीमों" की ख़बरगीरी करने पर बहुत बड़े अज्र-ओ-सवाब की बशारत दी गई है। और उस अज्र को बढ़ा कर (जिहाद) करने वाले और (हज) करने वाले के बराबर कर दिया गया है और साएमुद्दहर (हमेशा रोज़ा रखने वाला) बताया गया है। (बुखारी व मुस्लिम)